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वृ꣢षा꣣ ह्य꣡सि꣢ भा꣣नु꣡ना꣢ द्यु꣣म꣡न्तं꣢ त्वा हवामहे । प꣡व꣢मान स्व꣣र्दृ꣡श꣢म् ॥४८०॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

वृषा ह्यसि भानुना द्युमन्तं त्वा हवामहे । पवमान स्वर्दृशम् ॥४८०॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वृ꣡षा꣢꣯ । हि । अ꣡सि꣢꣯ । भा꣣नुना꣢ । द्यु꣣म꣡न्त꣢म् । त्वा꣣ । हवामहे । प꣡व꣢꣯मान । स्व꣣र्दृ꣡श꣢म् । स्वः꣣ । दृ꣡श꣢꣯म् ॥४८०॥

सामवेद » - पूर्वार्चिकः » मन्त्र संख्या - 480 | (कौथोम) 5 » 2 » 5 » 4 | (रानायाणीय) 5 » 2 » 4


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में सोम परमात्मा का आह्वान किया गया है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (पवमान) पवित्रता देनेवाले रसागार परमात्मन् ! आप (हि) क्योंकि (भानुना) अपने तेज से (वृषा) आनन्द-रस की वृष्टि करनेवाले (असि) हो, इसलिए (द्युमन्तम्) देदीप्यमान, (स्वर्दृशम्) मोक्षसुख को दर्शानेवाले (त्वा) आपको, हम (हवामहे) पुकारते हैं ॥४॥

भावार्थभाषाः -

जैसे सूर्य अपने तेज से जल की वर्षा करता है, वैसे ही परमेश्वर आनन्द-रस का वर्षक होता है। उस रसनिधि, रसवर्षक, तेजस्वी, तेज-वर्द्धक, आनन्दमय, मोक्षानन्द का दर्शन करानेवाले परमेश्वर की सबको उपासना करनी चाहिए ॥४॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ सोमं परमात्मानमाह्वयति।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (पवमान) चित्तशोधक पवित्रकर्तः रसागार परमात्मन् ! त्वम् (हि) यस्मात् (भानुना) स्वतेजसा (वृषा) आनन्दरसवर्षकः (असि) विद्यसे। तस्मात् (द्युमन्तम्) देदीप्यमानम्, (स्वर्दृशम्) स्वः मोक्षसुखं दर्शयतीति स्वर्दृक् तम् (त्वा) त्वाम्, वयम् (हवामहे) आह्वयामः ॥४॥

भावार्थभाषाः -

यथा सूर्यः स्वतेजसा जलस्य वृष्टिं करोति तथा परमेश्वर आनन्दरसस्य वर्षको भवति। स रसनिधी रसवर्षकस्तेजोवर्धक आनन्दमयो मोक्षानन्ददर्शकः परमेश्वरः सर्वैरुपास्यः ॥४॥

टिप्पणी: १. ऋ० ९।६५।४, ऋषिः भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा। ‘स्वर्दृशम्’ इत्यत्र ‘स्वाध्यः’ इति पाठः। साम० ७८४।